भारत चीन की नापाक हरकत का सैन्य और कूटनीतिक मोर्चे के साथ-साथ आर्थिक मोर्चे पर भी जवाब देने की पूरी तैयारी कर रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार ने उद्योगों से विदेशों खासकर चीन से आने वाले सामान के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी है। इसका मकसद चीन से आने वाले घटिया और गैर जरुरी सामान का आयात रोकना और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है।
हाल ही में चीन पर अपनी निर्भरता कम करने और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देने के उपायों के बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय में एक उच्च स्तरीय बैठक हुई थी। भारत के कुल आयात में चीन की 14 फीसदी हिस्सेदारी है जिस पर अब भारत ने नकेल कसने का फैसला किया है।
इसके अलावा 2014-15 और 2018-19 के बीच आयात में तेजी के आंकड़े, भारत में बनने वाले इसी तरह के सामानों का मूल्य, घरेलू उत्पादन की क्षमता और खपत, मुक्त व्यापार समझौतों के तहत होने वाले आयात तथा ड्यूटी के बारे में भी जानकारी मांगी गई है।
चीनी से आयात होने वाले सामानों में ऑटो कम्पोनेंट 20 फीसदी, इलेक्ट्रॉनिक सामान 70 फीसदी तक, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स का 45 फीसदी , एपीआई का 70 फीसदी और चमड़े के सामान में 40 फीसदी हिस्सेदारी है। इनके साथ खिलौने, प्लास्टिक, फर्नीचर आदि सामानों में बड़ी हिस्सेदारी है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन पर रोक लगाने से घरेलू उद्योगों को तत्काल राहत मिलेगी। इससे देश में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
केंद्र सरकार की चीनी उत्पादों के खिलाफ मुहिम तेज करने में राज्य सरकारों को भी साथ लेने की योजना है। केंद्र सरकार जल्द ही राज्यों को अपने खरीद अनुबंधों में संशोधन करने के लिए कह सकता है। नए अनुबंध में यह सुनिश्चित करने की कोशिश होगी कि स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं को तरजीह मिले और चीनी कंपनियों को प्रवेश न मिले। केंद्र सरकार ने हाल ही में 200 करोड़ रुपये तक के ठेके में सिर्फ देसी कंपनियों के लिए आरक्षित कर दिया है। केंद्र की योजना है कि राज्य सरकारें भी अपनी खरीद में इस नियम को अपनाएं।
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