एक बार तीर्थयात्रा पर निकले गुरू शिष्य कनकगिरी नगर मे जठराग्नि शमन करने हेतु मछिन्द्र नाथ ने गोरखनाथ को नगर में अलख जगाने का आदेश दिया ! घर घर के द्वार अलख जगाने पर भी निराश हुए गोरखनाथ को एक कुलीन ब्राह्मणि ने श्राद्धरत होने से खप्पर भरकर विविध व्यंजन भिक्षा दी और गोरखनाथ सहर्ष गुरूसमक्ष अर्पण किये !
दोनों ने भोजन ग्रहण किया तत्पश्चात मछिन्द्रनाथ ने कहा - बेटा गोरख ! दहीबडे़ तो बडे़ स्वादिष्ट है यदि एक
ओर मिल जाता तो ... ! गुरूमंशा जान गोरख तुरंत उठ खडे़ हुए और खप्पर चिमटा ले नगर को प्रस्थान किया। वे ग्राम-नगर के बाहर ही आश्रय लेते थे !
एक जीर्ण शीर्ण मंदिर में वहां ठहरे थे। पुन: उसी द्वार अलख उचारा तो एक कर्कशा ब्राह्मिणी जो उस स्त्री की जेठानी थी जिसने श्राद्ध के हलवा पूरी पकौडा व दहीबडा से खप्पर भरा था,द्वार पर आई ! गोरखनाथ बडी़ विनम्रता से बोले - माताजी ! मेरे साथ मेरे गुरूदेव भी है। आपके यहां से प्राप्त भोजन हमने बडे़ प्रेम से ग्रहण किया ! अभी गुरूजी की एक-दो दहीबडे़ और खाने की इच्छा बाकी है। जिस कारण मुझे दोबारा यहां आना पडा़। आप एक-दो दहीबडा़ और देने की कृपा करें !
"मुझे तो तू ही पेटू नजर आ रहा है। तेरी ही जीभ दहीबडे़ खाने को लपलपा रही है। गुरू बेचारे को व्यर्थ ही बदनाम कर रहा है - वह बोली ! गोरखनाथ बोले - माता ! मैं कभी झूंठ नहीं बोलता !
ब्राह्मिणी ने कहा - मैं तुम जैसे ठगों से भली भांति परिचित हूं। तुम कभी किसी का भला नहीं कर सकते। गृहस्थियों से लूटकर खाना ही तुम्हारा धर्म है !
उसके कठोर वचन सुन गोरखनाथ बोले - माताश्री ! आप मेरे गुरू की इच्छा पूर्ति कर दें तो मैं आपकी हर परेशानी दूर करने की कोशिश करूंगा !
ब्राह्मणी बोली - तेरे पास रखा ही क्या है जो तू मेरी मनोकामना पूरी करेगा ! गोरखनाथ -आप एकबार कहकर तो देखें कि मैं क्या कर सकता हूं ! वो बोली - -मुझे दहीबडे़ के बदले तेरी एक आँख चाहिए। बौल देगा !
आँख कौनसी बडी़ चीज है। मैं तो गुरू इच्छा के लिए अपनी जान भी दे सकता हूँ - गोरखनाथ ने जवाब दिया !
वह बोली - मैं दहीबडा़ लाती हूं तब तक तू आँख निकालकर रख ! इतना कह जब वह मुडी़ तो गोरखनाथ ने आँख में ऊंगली डाल पुतली को जोर से झटका मारकर आँख बाहर निकाल ली और खून टपकने लगा !
वह स्त्री लौटी तो उसके होश उड़ गए । वह मन ही मन दुखी होकर दहीबडे़ देकर जाने लगी ! तो गोरख बोले- माताजी ! आँख तो लेती जाओ ! वह पश्चाताप मे भर बोली-- बेटा ! मैं तेरी आँख लेकर क्या करूंगी ? मैं तो तेरी गुरू भक्ति देखकर खुद ही दुखी हो रही हूँ। बेटा ! मुझे माफ कर दे।
धन्य है भारतभूमि जहां ऐसे महान् गुरूभक्त शिष्य हुए जो अपने गुरू के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए सदैव तत्पर रहे।
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