ब्रह्मा जी ने अपनी मानस पुत्री अहिल्या की रचना थी। इनको ये वर था की ये हमेशा 16 साल की रहेंगी। जिस कारण इन्द्रादि देवता के मन में अहिल्या को पाने की कामना मन में जाग गई। तब ब्रह्मा ने एक स्पर्धा रखी जिसमे गौतम ऋषि जीते और उनका विवाह अहिल्या से हुआ। अहिल्या बहुत सुन्दर थी जिस पर इंद्र आशक्त था। जब इंद्र को यह पता चला कि उसकी अहिल्या गौतम ऋषि के पास है तो वह चन्द्रमा के साथ गौतम ऋषि के आश्रम में आया। वहां पर इंद्र मुर्गा बना और आधी रात को ही बांग दे दी। चन्द्रमा को द्वारपाल बनाया कि अगर गौतम लौटे तो वह इन्द्र को सूचित कर सके। और इंद्र ने गौतम का छद्मवेश धारण कर के अहिल्या के साथ छल किया।अहिल्या उन्हें ऋषि गौतम ही समझ रही थी, और अपना सर्वस्व दे दिया। उधर गौतम ऋषि ने जब मुर्गे कि आवाज़ सुनी तो सोचा की ब्रह्म मुहूर्त का समय हो गया हो और गंगा नदी पर पहुंचे स्नान करने पहुंचे। और उन्होंने अपना कमंडल भरने के लिए उसे नदी में डाला, तो माता गंगा बोलीं, “अरे गौतम! तुम इस समय यहाँ क्या कर रहे हो?” “माता गंगा! में यहाँ प्रतिदिन सुबह को स्नान के लिए आया करता हूँ। लेकिन आप ऐसा प
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